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गुमनाम शायरी

सार्वजनिक·12 सदस्य

मैंने कभी तुम्हारा सर्वस्व बनने की अभिलाषा रखी ही नहीं

मैंने कभी तुम्हारा सर्वस्व बनने की अभिलाषा रखी ही नहीं.. किन्तु, एक ऐसे स्थान की आकांक्षा अवश्य रही, जिसका कोई अन्य विकल्प संभव ही न हो..!!

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